न्यूज़लिंक हिंदी। 22 जनवरी को राम लला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। बही इस कार्यक्रम में शामिल होने से चारों शंकराचार्य ने इनकार कर दिया। पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने जहां प्राण प्रतिष्ठा में परंपराओं का पालन न होने का आरोप लगाया है, वहीं ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने निर्माण पूरा न होने से पहले प्राण प्रतिष्ठा किए जाने पर सवाल उठाए हैं। अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने 17 जनवरी 2024 को कहा कि मंदिर का अभी सिर बना ही नहीं, सिर्फ धड़ बना है और ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा करना ठीक नहीं है।
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अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ”हमें प्रोटोकॉल नहीं दिया। हमारा प्रोटोकॉल जो परंपरा के तहत मिलता था, उसे छीन लिया है। आप दलाई लामा को प्रोटोकॉल देते हैं, जो हिंदू धर्म के गुरु नहीं हैं। राम मंदिर में आप शंकराचार्य को नहीं बुलाते हैं, आप दलाई लामा को बुलाते हैं। ये क्या है? दलाई लामा कैसे हिंदू धर्म के कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं? आप दलाई लामा को महत्व देते हैं, लेकिन शंकराचार्य को महत्व नहीं देते, लेकिन आपके महत्व देने से शंकराचार्य का महत्व कम नहीं होगा। शंकराचार्य का महत्व अपनी जगह पर है। वह सनातन धर्म के मानने वालों का गुरु है और बना रहेगा।”
अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के पुराने बयानों का जिक्र कर जब उनसे पूछा गया कि क्या वे पीएम मोदी से व्यक्तिगत तौर पर नाराज हैं? इस पर अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा, ”2019 में हमने उनके खिलाफ (पीएम मोदी) चुनाव में एक व्यक्ति खड़ा किया था। लेकिन ऐसा क्यों किया, हमने इसलिए खड़ा किया, क्योंकि ये काशी कॉरिडोर बनवा रहे थे। कॉरिडोर के नाम पर लगभग 150 मंदिर लगभग तोड़ दिए गए। उनके अंदर की मूर्तियों को तोड़ दिया गया।तोड़ ही नहीं दिया गया, उन्हें मलबे में फेंका गया। ये मंदिर 200 से 1000 साल तक पुराने मंदिर थे। ये मंदिर हमारी आस्था और संस्कृति से जुड़े थे। हमें अच्छा नहीं लगा। हमें लगा कि हम औरंगजेब से इतनी नफरत क्यों करते थे? अब यही काम हमारा भाई, हमारी बहन कर रही है। तो हम उसे कैसे निर्दोष मान लें। जो मूर्ति तोड़ने की वजह से उनके खिलाफ नफरत है, वही इनके खिलाफ होनी चाहिए। हम चाहते थे कि ये बात जनता जान सके। इसलिए हमने एक उम्मीदवार उनके खिलाफ खड़ा किया। लेकिन उसके नामांकन को बिना गलती के खारिज कर दिया है।”
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शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, अब क्या हो रहा है कि वेद शास्त्रों को नहीं मान रहे हैं। गुरुओं को नहीं माना जा रहा है। हमारा नेता ही सब कुछ है। यह भावना भरकर हिंदुओं को पटरी से उतारा जा रहा है। अब इसका घाटा क्या है, अगर हम राजा को प्रतीक मान लें, तो राजा के साथ हर समय युद्ध होता ही रहता है, उसके शत्रु होते ही अगर किसी समय किसी वजह से राजा पराजित हो जाता है, तो हिंदू कहा जाएगा। हिंदू तो पराजित हो जाएगा। इसलिए हमारे पूर्वजों ने यही तरीका अपनाया था कि हम खुद को राजा में समाहित नहीं करेंगे। राजा भी हमारा अंग है, लेकिन हम अपने जीवन में धर्म को उतारेंगे। इसलिए हम ये चाहते हैं कि जो पद्धति बन गई है कि नेता के सर्कुलर को माने वह हिंदू है, यह सही नहीं है।