कैंसर के उपचार के करीब पहुंचा Kanpur आईआईटी, जैविक विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं हासिल की सफलता

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आईआईटी कानपुर

IIT Kanpur कैंसर व श्वसन संबंधी विकारों का उपचार खोजने में सफलता मिली है। संस्थान के जैविक विज्ञान और जैव अभियांत्रिकी विभाग के शोधकर्ताओं की टीम ने कैंसर की प्रगति और श्वसन संबंधी विकारों में शामिल एक प्रमुख मानव रिसेप्टर (सीएक्ससीआर2) की परमाणु संरचना की खोज लिया है। दावा है कि यह खोज इस महत्वपूर्ण अणु को लक्ष्य बनाकर नए उपचार विकसित करने का रास्ता साफ करेगी।

संस्थान की ओर से बताया बताया गया कि केमोकाइन्स छोटे सिग्नलिंग प्रोटीन होते हैं जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं को संक्रमण और चोट के स्थानों पर गाइडिंग करके प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे विभिन्न कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्लियों में रिसेप्टर्स के साथ परस्पर क्रिया करते हैं, जिससे शारीरिक प्रतिक्रियाओं को सक्रिय करने में भूमिका निभाते हैं। इन रिसेप्टर्स में, (सीएक्ससीआर2) विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सूजन संबंधी विकारों और कैंसर से संबंधित है, जिसमें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), अस्थमा, एथेरोस्क्लेरोसिस और अग्नाशय कैंसर शामिल हैं। आईआईटी की शोध टीम में शीर्षा साहा, सलोनी शर्मा, मणिसंकर गांगुली, नशरह जैदी, दिव्यांशु तिवारी, नबारुन रॉय, नीलांजना बनर्जी और रामानुज बनर्जी शामिल हैं। इस अध्ययन में जापान के टोक्यो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ सहयोग भी लिया गया था।

लॉक-एंड-की तंत्र में सफलता
शोधकर्ताओं ने एडवांस्ड क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का उपयोग करते हुए लॉक-एंड-की तंत्र में सफलता हासिल की है, जो (सीएक्ससीआर2) को कई केमोकाइनों को पहचानने की सुविधा प्रदान करता है। यह सफलता बायोमेडिकल विज्ञान को यह समझाती है कि कैसे कई केमोकाइन एक सामान्य रिसेप्टर को बांधते हैं और सक्रिय करते हैं।

उपचार के लिए अणविक खाका
आईआईटी कानपुर में अध्ययन के प्रमुख अन्वेषक प्रोफेसर अरुण कुमार शुक्ला ने कहा कि यह सफलता एडवांस जनरेशन के उपचारों को डिजाइन करने के लिए एक आणविक खाका प्रदान करते हैं। जो (सीएक्ससीआर2) को सटीक रूप से लक्षित कर सकते हैं। इसके अलावा संभावित रूप से कैंसर और श्वसन रोगों में इसकी भूमिका को कम कर सकते हैं। इस रिसेप्टर को इसकी सक्रिय अवस्था में देखकर, अब हमारे पास अत्यधिक विशिष्ट अवरोधक विकसित करने का अवसर है। जो इसके दुष्प्रभाव को बाधित कर सकते हैं। जिससे उपचार में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है।

पशुओं पर होगा प्रयोग
शोध को डीबीटी वेलकम ट्रस्ट इंडिया अलायंस, विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से समर्थन हासिल हो चुका है। टीम ने इस रिसेप्टर को लक्षित करने वाले छोटे अणुओं और एंटीबॉडी सहित नए उपचार विकसित करना शुरू कर दिया है। प्रयोगशाला परीक्षण के बाद पशुओं पर अध्ययन किया जाएगा।

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