डॉ. मनीषा दीवान
विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग
एस एन सेन कॉलेज कानपुर
अपने विचारों, दर्शन एवं शिक्षाओं से युवाओं के प्रेरणा स्रोत युग प्रवर्तक स्वामी विवेकानंद जी की आज 162वीं जयंती है। सर्वप्रथम 1984 में भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस को युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी तब से प्रत्येक वर्ष संपूर्ण देश में इसे युवा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। किसी देश का भविष्य उस देश की युवा शक्ति पर निर्भर करता है अतः स्वामी जी सदैव युवाओं को शक्तिशाली बने रहने का उपदेश देते थे उनका मानना था कि जिस देश का युवा निर्बल और शक्तिहीन होगा वह राष्ट्र कभी शक्ति संपन्न नहीं हो सकता’। उनके अनुसार मनुष्य का संघर्ष जितना कठिन होगा उसकी जीत भी उतनी बड़ी होगी जितना बड़ा आपका लक्ष्य होगा, उतना बड़ा आपका संघर्ष होगा ।’संघर्ष की राह में युवा अपना धैर्य न खोये इसके लिए वे प्रेरणा देते हैं कि हर कार्य को तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है उपहास ,विरोध एवं स्वीकृति अतः युवाओं को अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए संकल्प से सिद्धि होती है ।आज भारत सबसे अधिक युवा जनसंख्या वाला देश माना जा रहा है।
यदि युवा पीढ़ी अपनी ऊर्जा को संतुलित एवं सकारात्मक रूप से राष्ट्र निर्माण मे लगाएगी तो भारत एक बार पुनः विश्व गुरु बन जाएगा । इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि भारत में राष्ट्रीय बहुत जागृत करने में स्वामी विवेकानंद जी का प्रभाव सर्वाधिक था अतः स्वामी विवेकानंद के विचार वर्तमान समय मे भी प्रासंगिक हैं।
दीपोत्सव दीपावली का दिन महर्षि दयानंद सरस्वती जी के जीवन से संबंधित है दीपावली के दिन 30 अक्टूबर 1883 ई को अजमेर के भिनाय भवन में स्वामी जी ने अपना शरीर यह कहते हुए त्याग दिया था कि “हे दयामय सर्वशक्तिमान ईश्वर तेरी यही इच्छा है तेरी इच्छा पूर्ण हो अद्भुत तेरी लीला है।” इस दिन को महर्षि निर्वाणोत्सव के रूप में मनाया जाता है। महर्षि दयानंद समाज की अलौकिक विभूति थे। जब शिक्षित वर्ग पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध से निजगौरव , निज स्वाभिमान व प्राचीन गरिमा को भुला रहा था तब स्वामी जी ने अपने भारतवासियों की इस मोह निद्रा को भंग किया भारतीय जनता को राष्ट्रीयता का मंगलमय पाठ पढ़ाया।