News: मथुरा की राजनीति में बेचैनी, गठबंधन के ऊंट की ’करवट पर टकटकी’ पहले कई बार गुलाटी मार चुके नेताओं की मुश्किलें बढी

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फोटो परिचय- चुनाव चिन्ह भाजपा, रालोद।

न्यूजलिंक हिंदी,मथुरा। लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मथुरा की राजनीति में बेचैनी है। कान्हा की नगरी भगवा रंग में रंगी हुई है तो हैण्डपम्प वालों ने कभी खुद को कमतर नहीं आंका। यहां तक कि हैण्ड पम्प वाले यह कहते रहे हैं कि देश में सरकार किसी की हो मथुरा में तो रालोद की ही चलती है। गठबंधन का ऊंट किस करवट बैठेगा सभी दलों के नेताओं की टकटकी इसी पर लगी है। जिन राजनीतिक दलों का इस गठजोड़ से लेना देना नहीं है उनके नेताओं में भी बेचैनी है।

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वहीं वह नेता भी सांस थामे बैठे हैं जो गुलाटी मारने की फिराक में थे लेकिन अब उन्होंने अपनी कार्ययोजना को देखो और इंतजार करो के कॉलम में छोड दिया है। भाजपा और रालोद ने साल 2002 का विधानसभा और 2009 का लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा। एक बार फिर दोनों दलों के करीब आने की सुगबुहाट है। तरह तरह की चर्चाओं ने राजनीतिक हलकों में बेचैनी बढा दी है।

वहीं चर्चा यह भी चल निकली है कि भाजपा रालोद गठबंधन होता है तो जयंत चौधरी एक बार फिर मथुरा से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के साथ रालोद गठबंधन में चुनाव लड़ा था और जयंत चौधरी पहली बार सांसद पहुंचे थे।

वहीं भाजपा खेमे में भी हलचल है लेकिन पार्टी लाइन के हिसाब से नेता कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। लेकिन टिकट की जुगत में जुटे नेताओं में बेचौनी साफ देखी जा रही है। रालोद ने 2022 के विधानसभा चुनाव में दमखम दिखाया। सपा के साथ गठबंधन में पश्चिम यूपी की नौ सीटों पर जीत दर्ज की।

हालांकि मथुरा जनपद में रालोद खाता नहीं खोल पाई और सभी सीटों पर भाजपा की भारी बहुमत से जीत हुई। इससे रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह का सियासी कद बढ़ा। हालांकि 2022 में भी उनके रालोद में जाने की चर्चा तेज हुई थी। एक बार फिर चर्चाओं का बाजार गर्म है।

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