अब सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 498A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए उस जनहित याचिका को पूरी तरह से खारिज कर दिया ।
जिसमें इस प्रावधान को अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताते हुए इसके तहत FIR दर्ज करने से पहले अनिवार्य प्रारंभिक जांच की मांग की गई थी।
साथ ही जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने याचिकाकर्ता की उस दलील को अस्वीकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि यह प्रावधान पुरुषों को समान सुरक्षा प्रदान नहीं करता और इसका दुरुपयोग हो रहा है।
और अदालत ने स्पष्ट किया अनुच्छेद 15 विशेष रूप से महिलाओं की सुरक्षा हेतु विशेष कानून बनाने की अनुमति देता है। दुरुपयोग के मामलों का परीक्षण प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए।”
इसके अलावा याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि कई अन्य देशों में घरेलू हिंसा कानून सभी लिंगों पर समान रूप से लागू होते हैं, जबकि भारत में यह अधिकार केवल महिलाओं को ही दिया गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए भी कहा गया।
और हमारी संप्रभुता बरकरार है। हम क्यों दूसरों का अनुसरण करें? उन्हें हमारा अनुसरण भी करना चाहिए।
साथ ही पीठ ने यह स्वीकार किया कि किसी भी कानून के दुरुपयोग की आशंका हो सकती है, परन्तु इस आधार पर कानून को पूरी तरह से रद्द नहीं किया जा सकता हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि कई न्यायालय पहले दुरुपयोग के पहलुओं को चिन्हित कर चुके हैं, लेकिन इस आधार पर प्रावधान को कमजोर करना या रद्द करना उचित नहीं होगा।