न्यूज़लिंक हिंदी। प्रत्येक माह में दो चतुर्थी तिथि पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। इस समय मार्गशीर्ष का महीना चल रहा है। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार 30 नवंबर को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत है। इस दिन चतुर्थी का व्रत रखा जाता है और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन गणेश जी की पूजा करने से जीवन में आ रही सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। साथ ही व्यक्ति को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसे में आइए जानते हैं गणाधिप संकष्टी चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहूर्त और व्रत के नियम के बारे में…
शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 30 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 24 मिनट पर शुरू हो रही है, जो 1 दिसंबर को दोपहर 03 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। संकष्टी चतुर्थी पर चंद्र दर्शन करने का विधान है। अतः 30 नवंबर को संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन चंद्र दर्शन का समय संध्याकाल 07 बजकर 54 मिनट पर है।
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संकष्टी चतुर्थी पर गणपति पूजा का लाभ
संकष्टी चतुर्थी व्रत शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना से करती हैं। वही इस व्रत के प्रताप से आर्थिक संकट दूर होता है, साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का बड़ा महत्व है। कुंवारी कन्याएं भी अच्छा पति पाने के लिए दिन भर व्रत रखकर शाम को भगवान गणेश की पूजा करती हैं। ये व्रत सभी कष्टों का हरण करने वाला माना जाता है।
पूजा विधि
- संकष्टी चतुर्थी के दिन सबसे पहले सुबह उठें और स्नान करें।
- इस दिन लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करें।
- पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
- स्वच्छ आसन या चौकी पर भगवान को विराजित करें।
- भगवान की प्रतिमा या चित्र के आगे धूप-दीप प्रज्वलित करें।
- ॐ गणेशाय नमः या ॐ गं गणपतये नमः का जाप करें।
- पूजा के बाद भगवान को लड्डू या तिल से बने मिष्ठान का भोग लगाएं।
- शाम को व्रत कथा पढ़कर चांद देखकर अपना व्रत खोलें।
- अपना व्रत पूरा करने के बाद दान करें।
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गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के व्रत नियम
- जो लोग गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत रख रहे हैं, उन्हें ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करना अनिवार्य है।
- स्नान आदि के उपरांत स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए।
- उसके बाद पूजा स्थल में जाकर व्रत का संकल्प लें।
- इस दिन व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें।
- तामसिक भोजन जैसे मांस, मदिरा का सेवन भूलकर भी न करें।
- क्रोध पर काबू रखें और खुद पर संयम बनाए रखें।
- गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश जी के मंत्रों के जाप के साथ श्री गणेश स्त्रोत का पाठ भी करें।
- गणाधिप संकष्टी चतुर्थी व्रत का पारण चंद्रोदय के पश्चात अर्घ्य देकर ही करें।