यहाँ करवा चौथ का चाँद तो निकलेगा पर चाँदनी नहीं खिलेगी
न्यूज लिंक हिंदी, मथुरा । सामाजिक रूढ़िवादिता के चलते बृज नगरी के एक गांव में आज भी महिलाएं करवा चौथ का व्रत नहीं रख पाती है एक तरफ विज्ञान के साथ इंसान भले ही चाँद पर पहुंच गया हो परन्तु कान्हा की नगरी जनपद मथुरा में एक ऐसा गांव भी है जिसमें रहने वाली हिंदू महिलाएं सुहाग की दीर्घायु की कामना करने वाले पर्व करवा चौथ का व्रत अज्ञात अनहोनी की वजह से नहीं रखती है।
नियत तारीख पर चांद पूरे जोश से आसमान पर चमका मगर सामाजिक रूढ़िवादिता से ‘चांदनी’ पर मायूसी छाई रही। लम्बे अर्से से चली आ रही यह परम्परा नव विवाहिताओं के लिए चौंकाने वाली रही। तमन्ना थी कि पहली करवाचौथ पर पति की दीर्घायु को निर्जला व्रत एवं सोलह श्रंगार कर अपने चांद का दीदार करेंगी। लेकिन श्राप की बंदिशो के चलते ऐसा नहीं कर पायेगीं। कस्बा सुरीर के मुहल्ला वघा में इसी वर्ष शादी होकर आई विवाहिता आरती का यह पहला करवाचौथ का त्यौहार है।
सुहाग सलामती के लिए वह करवाचौथ का व्रत रखना चाहती थी लेकिन जब उसके ससुरालीजनों ने उसे बताया कि सती के श्राप के भय से उनके यहां कोई करवाचौथ का त्यौहार नहीं मनाता तो वह चकित रह गयी और उसे भी वर्षों से चली आ रही परम्परा निभाने को विवश होना पड़ा। इसी तरह नवविवाहिता मंजू का यह पहला करवाचौथ का था लेकिन जब उसने सती के श्राप की परम्परा के बारे में सुना तो वह भय से यह त्यौहार मनाने की बात भूल गयी।
इसी तरह मुहल्ले की विवाहिता सपना ने बताया कि करीब आठ वर्ष पहले उसकी शादी होकर आई तो पहले करवाचौथ पर सुहाग सलामती को व्रत रखने की मन में बड़ी उमंग थी लेकिन बंदिश की इस परम्परा से इस त्यौहार को न मना पाने की कसक आज भी बनी रहती है।
मुहल्ले की जानकी देवी का कहना है कि वह करवाचौथ के व्रत में नहीं बल्कि अपने परिवार की सलामती पर विश्वास रखती है। मुहल्ले की महिला रामवती का कहना है कि सती माता अब श्राप नहीं आशीर्वाद देती हैं। बात रही करवाचौथ और अहोंई अष्टमी मनाने की तो वर्षों से चली आ रही इस परम्परा को तोड़ने की हिम्मत किसी में नहीं हैं।
क्या है सती का श्राप
जनपद मथुरा के कस्बा सुरीर में करवाचौथ न मनाने के पीछे जो घटना सामने आई है उसके मुताबिक करीब 200 वर्ष पहले गांव रामनगला( नौहझील) का एक ब्राह्मण युवक गौना कराकर अपनी नवविवाहिता पत्नी को ससुराल से विदा कराकर सुरीर के रास्ते भैंसा बग्घी से गांव जा रहा था तभी सुरीर में एक जाति के लोगों ने उसकी भैंसा बग्घी को रोक लिया और बग्घी में जुटा भैंसा अपना बताते हुए विवाद खड़ा कर दिया जिसमें ब्राह्मण युवक की हत्या हो गयी। अपने सामने पति की मौत से कुपित नवविवाहिता ब्राह्मणी ने इस मुहल्ले के लोगों को श्राप देते हुए सती हो गयी थी। इस घटना के बाद मुहल्ले में अनहोनी शुरू होने लगी। इसे सती का श्राप कहें या बिलखती पत्नी के कोप कहर यहां कई नव विवाहिताएं विधवा हो गयीं और जवान मौतों से उस समय मुहल्ले का सुख चैन छीन लिया था।
इन घटनाओं को देख बुजर्ग लोगों ने इसे सती का श्राप माना और इस गलती की क्षमा याचना की थी। इसी के चलते इस मुहल्ले में कोई महिला करवाचौथ और अहोंई अष्टमी मनाना तो दूर पूरा श्रंगार भी नहीं करती हैं। उन्हें सती के कुपित होने का भय बना रहता है। उधर इस घटना के बाद से आज तक गांव रामनगला के ग्रामीण कस्बा सुरीर में खाना तो दूर पानी से भी परहेज करते हैं। उन्हें सती की आन लगी है कि सुरीर के सिमाने का पानी पीने पर परेशानी हो सकती है।कस्बा सुरीर में सती माता का मन्दिर बना हुआ है आज भी वहां सभी जाति के लोग शादी विवाह के अवसर पर मन्दिर पर माथा टेक पूजा अर्चना करते है ।